भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे नौं सहु दा कित मोल / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह |अनुवादक= |संग्रह=बुल्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे नौं सहु दा कित मोल।
मेरे नौं सहु दा कित मोल।

अगले वल्ल दी खबर ना कोई, रह किताबाँ फोल।
सच्चिआँ नूँ पै वज्जण पौले, झूठिआँ करन कलोल।
चंग चँगेरे पर परेरे, असीं आइआँ सी अनमोल।
बुल्ला शाह जे बोलांगा, हुण कौण सुणे मेरे बोल?

मेरे नौं सहु दा कित मोल।
मेरे नौं सहु दा कित मोल।

शब्दार्थ
<references/>