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जिन्दगी की राह में / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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जिन्दगी की राह में प्रिय,
फूल भी हैं, शूल भी हैं॥
हर कदम अपना यहाँ तुम
यह समझ आगे बढ़ाओ;
शूल ओ चुभ जायँ, उनको
बीन पलकों से उठाओ।
बाढ़ बन जाये भले हर बूँद
फिर भी नाव ले कर
तुम चलो, जीवन-सरित में
बाढ़ भी हैं, कूल भी हैं॥1॥
जन्म जिस भू पर लिया
वह ही स्वयं समतल नहीं है;
है नदी, नाले कहीं, तो
घाटियाँ, पर्वत कहीं हैं।
हर समय कब एक सी
चलती हमेशा ही हवाहै?
रुख बदलता है, कभी
अनुकल भी, प्रतिकूल भी है॥2॥
जनवरी, 1960