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अतीत और वर्तमान / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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गाता हूँ गौरव गाथाएँ
भारत के स्वर्णिम अतीत की
किंतु नहीं गौरव का अनुभव
मुझको अब उतना होता है।

वृद्ध-अशवत जाति ही अपनी
गाथा है अतीत की गाती,
कर सकती जब नहीं और कुछ
उससे शक्ति-प्रेरणा पाती।

पर मेरा भारत अपने-
अंतर-बाहर में चिर नवीन है;
इसीलिए अतीत का ही गुण-
गान न मान्य मुझे होता है।1।

मेरी पीढ़ी ने क्या अब तक
किया नहीं ऐसा कुछ भी है?
उसने क्या दुनिया को अब तक
दिया नहीं ऐसा कुछ भी है?

जिसको गाएँ और सुनाएँ
गौरवपूर्ण भरे गीतों में,
वर्तमान का मूल्यांकन तो
वर्तमान से ही होता है।2।

जो अतीत में ही जीते हैं
उनका वर्तमान पिछड़ा है
जिनका वर्तमान पिछड़ा, उन
का आगे भविष्य बिगड़ा है।

वर्तमान में जीने को ही
मैं असली जीना कहता हूँ,
बीते युग में जीते रहना
सिर्फ पलायन ही होता है।3।

6.4.85