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बस इतना ही / कुमार कृष्ण
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चुटकी भर तनाव
पुड़िया भर आक्रोश
मुट्ठी भर अन्तर्विरोध
डिबिया भर उलफ़त
टोकरी भर स्नेह
सन्दूक भर संवेदना
पोटली भर वर्णमाला
चिलम भर आग
चम्मच भर राग
बस्ता भर विश्वास
खीसा भर साहस
डलिया भर सपने
बस यही माँगता है एक मनुष्य
इस बाँझ होती पृथ्वी से।