भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लफ्जों की अलमारियाँ खोलने वाला आदमी / कुमार कृष्ण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 8 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह जब भी आता है-
हम अक्सर कविता पर बात करते हैं या फिर किसी
नयी पुस्तक के आने की खबर के बारे में
उसके पास हमेशा होते हैं नये-नये जूते
तरह-तरह की कमीजें
उसे कोट से शायद सख्त नफरत है
इसीलिए वह लटका रहता है हमेशा
उसकी कविता की खूँटी पर
वह नहीं छुपाना चाहता किसी चीज को
बटनों की आड़ में
वह जानता है अच्छी तरह
कौन-सा बटन कब छोड़ जाए साथ क्या पता
वह जानता है-
लफ्ज़ों की अलमारियाँ खोलने की कला
उसे मालूम है
जिस दिन हो जाएँगी बन्द
लफ्ज़ों की अलमारियाँ
बंजर हो जाएगी उस दिन पूरी पृथ्वी
कोई नहीं खटखटाएगा किसी का दरवाजा
मुझे उसका बार-बार दरवाजा खटखटाना
बेहद अच्छा लगता है।