Last modified on 17 मार्च 2017, at 11:35

छिपी आंखों से / विष्णुचन्द्र शर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आकाश में
सूरज टहल रहा है
हरे खेतों के साथ
धूप गा रही है लोकगीत।

मैं न खेत-सा ताज़ा हूँ
न धूप-सा प्रसन्न!
बस
छिपी आँखों से
सूरज को बताता रहा
अपनी व्यथा।