भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त गुजर रहा है / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुमने क्या ट्रेन की जंजीर खींची है!
घने जंगल में ट्रेन
तुम्हारा इंतजार कर रही है।
आ भी जाओ
वक़्त गुज़र रहा है
ऊपर की टहनी में
रात काजल की झालर बाँध रही है
आओ भी...!