भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चीख के पहले / अनिल अनलहातु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल अनलहातु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
और इसके पहले कि
सबकुछ खत्म हो जाए
सदा के लिए,
और तुम्हारे भीतर के
अंधेरे में डूब जाए.
मैं तुम्हारे अंदर के
आक्रोश को सुरक्षित
रख लेना चाहता हूँ
शीशे के चमकते जार, मर्तबान में
या किसी संग्रहालय की
अंधेरी दराज़ में।
ताकि देख सकें
आनेवाली पीढ़ियाँ
कि गुस्सेवर आदमी की
आखिरी चीख
कितनी सतही, खोखली और
हास्यास्पद होती है।