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कस्बाई अस्पताल में / ब्रजेश कृष्ण

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निस्पृह ऊंची दीवारें
लाठी टेककर चलता हुआ बूढ़ा पंखा
कस्बे के टोपी आदमियों से
गपशप करता थुलथुल डाक्टर
और लम्बे तटस्थ बरामदे में
भिनभिनाते मरीज और मक्खियां।

मैं बगल में बैठी
पीली लड़की की आंखों में शिकायत
और पहुंच से ऊपर टंगी
शिकायत पेटी में उसकी आंखें देखता हूं।

और सामने के ठूंठ हो गए पेड़ में
तेजी से समा जाता हूं।