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अप्रवासी / रमेश आज़ाद

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गगनचुम्बी इमारतों के बीच
जहां
आकर बसे हैं
अपना कहने को कोई दरवाजा नहीं है।

जहां
छूटा था घर
वहां लौटने का
अब कोई रास्ता नहीं है...