भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे शिक्षक / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 29 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज पंडित |अनुवादक= |संग्रह=अंग प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हे शिक्षक! तोंय अगम ज्ञान के
अद्भुत श्रोत कहाबै छो।
बच्चा जब तुतराबै बोली
बाप-माय रंग धरी केॅ अँगुली
चलै के ज्ञान बताबै छो-हे शिक्षक...
प्रथम गुरु जब छोड़ै ध्यान
तबेॅ करै छो तोंय कल्याण
स्कूल में पाठ पढ़ावै छो-हे शिक्षक...
होय छै बच्चा पढ़ी जवान
एक दिन होय छै वही महान
ऐन्हो दीप जलाबै छो-हे शिक्षक
माता रंग ममता तोरो मिललै
पिता बनी जब उ फूल खिललै
कर्म के ज्ञान सिखावै छो-हे शिक्षक...
देश काल आरू ई समाज के
जग टिकलो तोरै सऽ आज के
जों सच्चा ज्ञान बताबै छो
हे शिक्षक! तोय अगम ज्ञान के
अद्भुत श्रोत कहावै छो।