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8 / हीर / वारिस शाह

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इक तखत हजारे दी गल कीजे जित्थे रांझयां रंग मचाया ए
छैल गभरू मसत अलबेलड़े नी सुंदर इक थीं इक सवाया ए
वाले कोकले मुंदरे मझ<ref>कमर तोड़</ref> लुंगी नवां ठाठ ते ठाठ चड़हाया ए
केही सिफत हज़ारे दी आख सकां गोया मिशत ज़मीं ते आया ए

शब्दार्थ
<references/>