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16 / हीर / वारिस शाह

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करे आकड़ां खाके दुध चावल एह रज के खान दीयां मसतियां ने
आखन देवर नाल निहाल होइयां सानूं सभ शरीकनां हसदियां ने
एह रांझे दे नाल हन घयो शकर पर जीउ दा भेत न दसदियां ने
रन्नां डिगदियां देख के छैल मुंडा जिवें शहद विच मखियां फसदियां ने
इक तूं कलंक हैं असां लगा होर सब सुखालियां वसदियां ने
घरों निकलें जदों तूं मरें भुखा भुल जाण तैनूं सभे मसतियां ने

शब्दार्थ
<references/>