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32 / हीर / वारिस शाह
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वाह ला रहे भाई भाबियां भी रांझा रूस हजारयों धाया ई
भुख नंग नूं झागके पंध करके रातीं विच मसीत ते आया ई
हथ वंझली पकड़ के रात अधी औथे रांझे नूं मजा भी आया ई
रन्न मरद न पिंड विच रिहा कोई घेरा गिरद मसीत ते पाया ई
वारस शाह मियां पंड झगड़ियां दी पिच्छे मुलां मसीत दा आया ई
शब्दार्थ
<references/>