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कांच के घर साथ रहते हैं / जहीर कुरैशी

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कांच के घर साथ रहते हैं

हर समय डर के साथ रहते हैं


जो बिछाने के बाद ओढ़ सकें

ऐसी चादर के साथ रहते हैं


उनके अहसास हो गए पत्थर

वो जो पत्थर के साथ रहते हैं


जब से बच्चों ने घर सम्हाल लिया

हम दबे 'स्वर' के साथ रहते हैं


कुछ अँधेरे किवाड़ के पीछे

रोशनी—घर के साथ रहते हैं


यक्ष—प्रश्नों का जो गवाह रहा

उस सरोवर के साथ रहते हैं


झील से छेड़—छाड़ करने को

लोग कंकर के साथ रहते हैं