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52 / हीर / वारिस शाह

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रात हस के खेड गुजारीया सू सुबह उठ के जीउ उदास कीता
राह जांदड़े नूं झुगी नजर आई डेरा चा मलाहां दे पास कीता
अगे पलंघ बेड़ी विच विछिआ सी उते खूब विछौना रास कीता
इथे जा वजा के वंझली नूं चा पलंग उते आम खास कीता
वारस शाह जां हीर नूं खबर होई तेरी सेज दा जट ने नास कीता

शब्दार्थ
<references/>