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बेहतर दुनिया के लिए / कर्मानंद आर्य
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एक नाई ने जब लिखनी चाही अपनी पटकथा
स्याही ख़त्म हो गई
एक तमोली ने
जब लाल करने चाहे अपने होंठ
उसका बीड़ा छीनकर खा गए सामंत
एक पासी ने जब लड़ने से इनकार कर दिया
दबंगों ने काट दिए उसके हाथ
चमारों ने एक समूह बनाया
वे बेगारी नहीं करेंगे भूख की कीमत पर
तालाब का पानी पीने का हक मिलना चाहिए उन्हें भी
ठीक उसी समय
‘ब्राह्मण’ पत्रिका का सम्पादक
कह रहा है अपने लोगों से
‘चार माह बीते जजमान, अब तो करो दक्षिणा दान’
हम कैसे नवजागरण में थे खुदा
जहाँ पीने का पानी नहीं नसीब था इंसानों को
जहाँ हर गली में
विश्वविद्यालय की जगह ताजमहल बनाया जा रहा था