भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
127 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हीर माउं नूं आण सलाम कीता माउं आखदी आ नी नहरिए नी
बड़बोलीए गोलिए बेहयाये खंडो टिडिए गुल बहरिए नी
तूं आयके साड़के लोहड़ दिता लिंग घडूंगी नाल मुतहरिए<ref>सोटा</ref> नी
अक उठसी आखनी हां टल जा उधलो महर रांझे देनाल दिए महरिए नी
साहनां नाल रहें दिन रात खैंहदी आ टली कुपतीए रहड़िए नी
अज रात नूं जू वाह<ref>नदी</ref> डोबां तेरी सायत आवंदी कहरिए नी
वारस शाह जदों कपड़धड़ी होसी बेखीं नाल ढाहा उते लहरिए नी
शब्दार्थ
<references/>