भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

177 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चूचक सयाल नेकौल विसार दिते जदों हीर नूं पाया माइयां नी
कुड़ियां झंग सयाल दीयां धुन्बला हो सभे पास रंझेटेदे आइयां नी
उथे वयाह दे सब समान होए गंढी फेरियां देस ते नाइयां नी
ओए मूरखा पुझ तू नढड़ी नू मेरे नाल तू केहीया चाइयां नी
हुन तेरी रझेटया गल कीकूं तूं हीं रात दिन महीं चराइयां नी

शब्दार्थ
<references/>