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214 / हीर / वारिस शाह

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लै वे रांझया वाह मैं ला थकी मेरे वस थीं गल बे वस होई
काज़ी मापयां भाइयां बनन तोरी मैंडी तैंडड़ी दोसती बस होई
घरी खेड़यां दे नहीं वसना में साडी उन्हां दे नाल खरखस होई
जां जीवांगी मिलांगी रब्ब मेले हाल साल तां दोसती वस होई
वारस शाह तों पुछ लै लेख मेरे होनी हीर निमाणी दी सस होई

शब्दार्थ
<references/>