भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
254 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:27, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बचा! सैं तूं जिस कलबूत अंदर सचा रब्ब है थाओं बनाए रहया
माला मनकयां दे विच इक धागा तिवें सरब दे विच समा रहया
जिवें पतरी मेंहदी दे रंग रचाया तिवें जान जहान में आ रहया
जिवें रकत सरीर विच सास अंदर तिवें जात में जोत समा रहया
रांझा बन्नके खरच ही मगर लगा जोगी अपरा जोर सब ला रहया
तेरे दुअर जोगा हो रिहा हां मैं जोगी जट नूं कथा समझा रहया
वारस शाह मियां जिहनूं इशक लगादीन दुनी दे कम थीं जा रहया
शब्दार्थ
<references/>