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285 / हीर / वारिस शाह
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भेत दसना मरद दा कम्म नाहीं मरद सोई जो वेख दम घुट जाए
गल जीऊ दे विच जो रहे खुफिया काउं वांग पैखाल<ref>बीच में</ref> ना सुट जाए
भेत दसना किसे दा भला नाहीं भावें पुछ के लोक नखुट जाए
वारस शह ना भेत संदूक खुले भावें जान दा जंदरा टुट जाए
शब्दार्थ
<references/>