भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

314 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नयाना तोड़ के ढांडड़ी<ref>गाय</ref> उठ नठी भन दोहनी दुध सब डोहलया ए
घत खैर इस कटक दे मोहरी नूं जट उठके रोह विच बोलया ए
किस लुचड़े देस दा जोगिया तूं ऐथे डंड<ref>शोर</ref> की आन के बोलया ए
सूरत जोगियां दी अखी गुंडयां दी टाप कनकदी ते जिउ डोलया ए
जोगी अखियां कढके घत तिऊड़ी लै के खपरी हथ विच तोलया ए
वारस शाह हुण जोग तहकीक<ref>सच में</ref> होया जीउ शागनी दा अगों बोलया ए

शब्दार्थ
<references/>