भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
340 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आ नढीए गैब क्यों चाया ई साडे नाल की रिकता<ref>झगड़ा</ref> चाइयां नी
बेकसां दा कोई ना रब्ब बाझों तुसीं दोवं ननाण भरजाइयां नी
जेहड़ा रब्ब दे नाम ते भला करसी अगे मिलनगियां ओस भलाइयां नी
अगे तिन्हां दा हाल ज़बून<ref>बुरा, मंदा</ref> होसी अखीं वेख करन जो बुरयाइयां नी
शब्दार्थ
<references/>