भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
370 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जदों तीक जिमी असमान कायम तदों तीक ए वाह सब वहनगे जी
सभे किबर<ref>घमंड</ref> हंकार गुमान लदे आप विच एह अन्त नूं ढहनगे नी
असराफील<ref>फरिश्ता</ref> जां सूर करनाएं<ref>नाद, कहते हैं कि कयामत के दिन फरिश्ता असराफील जबअपना सुर फूँकेगा तब सारे मुर्दे जाग उठेंगे और अल्लाह उनका इंसाफ करेगा।</ref> फूके तदों सब पसारड़े ढहनगे नी
कुरशी<ref>तखत</ref> अरश ते लोह कलम<ref>तकदीर लिखने वाली कलम</ref> जनत रूह दोजखां सब एह रहनगे नी
कुरआ<ref>पांसा</ref> सुटके प्रशन मैं लावना हां दसां उनां जोउठके बहनगे नी
नाले पतरी खोलके फोल दसां वारस शाह होरी सच कहनगे नी
शब्दार्थ
<references/>