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420 / हीर / वारिस शाह

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भला आख की आनिए नेक पाके जैदे पलू ते पढ़न नमाज आई
घर बार तेरा असीं कौण कोई जापे लद के घरों जहाज आई
नढे मोहनिए झोटे दोहनिए<ref>दूध दहना</ref> नी अजे तक ना इक थी बाज आई
वारस शाह जवानी दी उमर गुजरी अजे तक ना हिरस थीं बाज आई

शब्दार्थ
<references/>