भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

471 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहती जा के हीर दे कोल बहके भेत यार दा सब समझया ई
जिसनूं मारके घरों फकीर कीतो उही जोगिड़ा होयके आया ई
उहनूं ठग के महियां चराइयां नी एथे आन के रंग वटाया ई
तेरे नैनां ने चा मलंग कीता मानों इसनूं चा भुलाया ई
ओह वी कन्न पड़वा के आन लथा आप वहुटड़ी आन सदाया ई
आप हो जुलेखां दे वांग सची उहनूं यूसफ चा बनाया ई
दिते कौल करार विसार सारे आंन सैंदे नूं कौंत<ref>घरवाला</ref> बनाया ई
होया चाक पिंडे मली खाक रांझे कन्न पाड़ के हाल वजाया ई
देनेदार मवास<ref>आकी</ref> हो कढ उसनूं कल मुहलियां नाल कुटाया ई
हो जाए निहाल ते करे जिआरत तैनूं बाग विच उस बुलाया ई
जिआरत मरद कफारत<ref>कपकारा, प्रायश्चित</ref> दी होसियाई नूर फकर दा वेखना आया ई
बहुत जुहद<ref>तपस्या</ref> कीता मिले पीर पंजे मैंनूं कशपफ दा जोर विखाया ई
झब नजां<ref>मौत का समय</ref> लैके मिले हो रयत<ref>जनता</ref> फौजदार तयार हो आया ई
इहदी नजर नूं आबेहयात उस दा केहा झगड़ा भाबीए लाया ई
चाक लायके कन्न पड़वायों ई नैनां वालीए गजब क्यों ढाया ई
बचे ऊह फकीरां तो हीर कुड़ीएहथ बन्ह के जिन्हां बखशाया ई
इके मार जासी इके तार जासी झुल मीह निअउं दा आया ई
अमल फौत<ref>सुन्न, ना होने के बराबर</ref> ते वडी दसतार फुली केहा भीलने सांग बनाया ई
वारस कौल भुलायके खेड रूधे केहा नवां मखौल जगाया ई

शब्दार्थ
<references/>