भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

522 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जदों सांगरां वाहरां कूच कीती सारे देस ते धुम भुचाल आही
खेड़ों खबर होई चढ़या देस सारा नूंह खेड़या दी जेहड़ी सयाल आही
सरदार सी खूबां दे त्रिंजणी दी जैदी हंस ते मोर दी चाल आही
खेड़े नाल सी उस अनजोड़ मुढों दिलों साफ रंझेटे दे नाल आही
इना कैदा कुना<ref>मक्कर, फरेब</ref> बाब औरतां दे धुरों विच कुरान दे फाल आही
वारस शाह सुहागा ते अग वांगू सोना खेड़या दा सभो गाल आही

शब्दार्थ
<references/>