भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठऽ के बारात छै अखनी / खुशीलाल मंजर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:21, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खुशीलाल मंजर |अनुवादक= |संग्रह=पछ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दुनियां एक दाव छे कै
जिनगी एक नाव छेकै
तबेॅ नीं कहैं छिहौं
एक नम्मर रऽ ठठ्ठर गाड़ी
दू नम्मर रऽ चमचम कार
ऊँच्चऽ नीच्चऽ कुच्छ नै बुझतौं
सुक्खा पानी सभ्भे पार
चक चक धोती फर-फर कुर्त्ता
बात गुलाबी खाड़े खाड़े
हम्मू सहै छी हुनकऽ जुत्ता
दुख भीझैं छै हाड़े हाड़
कुच्छ जों बिरोध करऽ तेॅ
हुनकऽ महिमा अपरमपार
एक नम्मर रऽ ठठ्ठर गाड़ी
मत पूछऽ कि हुनकऽ अखमी
खाली घुरची खाली फेर
जन्न जैतौ जन्नेॅ जखनी
सब चीजऽ रऽ ढेरे-ढेर
हुनकऽ अकासें हऽर बहै छै
हमरऽ जिनगी धक्कामार
एक नम्मर रऽ ठठ्ठर गाड़ी
सगरे छौं हुनके जीमीदारी
घरऽ सें बहारें सोर
पहले कुरसी हुनकैं मिलतौं
दुख भीझै छऽ पोरे-पोर
झूठऽ के बरात छै अखनी
कनियाय दुल्हा गल्लाहार
एक नम्मर रऽ ठठ्ठर गाड़ी