भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात लिखती है नज़्म / हरकीरत हीर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 10 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई सन्नाटा नहीं पूछता
जली लकीरों से कहानी
रह रहकर उठती टीस
रात की छाती पर लिखती है नज़्म
खामोश नज़रें टकरा कर लौट आती हैं
मुहब्बत की दीवारें से
दर्द हौले हौले सिसकता है
रात लिखती है नज़्म

सहसा देह से
इक फफोला फूटता है
कंपकँपता है जिस्म
कोरों पर कसमसाती हैं बूंदें
अँधेरा डराने लगता है
दर्द हौले हौले उतारता है लिबास
रात लिखती है नज़्म

धीरे धीरे ज़ख़्म
उतार देते हैं हाथों से पट्टियां
झुलसी लकीरों से ख़ामोशी करती है सवाल
दर्द अपनी करवट क्यों नहीं बदलता
लकीरें खामोश हैं
वक़्त ठठाकर हँसता है
रात लिखती है नज़्म