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सर्दी का गीत / देवेन्द्र कुमार

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जब तब सर्द हवा के झोंके
अगल बगल की दीवारों पर
रख जाते हैं
ताक झरोखे।

गोल तिकोना
कोई कोना
क्या अब भी बचा रह गया
याद आ रहा जिनका होना !
हफ़्ते का सबसे उजाड़ दिन
यह इतवार —
न रुकता, रोके।

हाथों की गुमसुम रेखाएँ
लौट रहे सूने पठार से
आधे बच्चे - आधी गायें,
आग जलाकर बाट जोहते
कुछ सवाल
ख़ामोश घरों के।