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बाग़ों में टहलता अन्धेरा / देवेन्द्र कुमार
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बाग़ों में टहलता
अन्धेरा।
धूल फाँकता, धुआँ उड़ाता
चिड़ियों के पंख फड़फड़ाता
डाँक रहा गाँव का
सबेरा।
आधी उज्जर, आधी करिया
साँय-साँय करती दुपहरिया
ख़ाली घर
भूतों का डेरा।
पत्तों की वर्दियाँ उछाले
फूलों से साँप को निकाले
है कोई बावरा
सपेरा।