Last modified on 28 अप्रैल 2017, at 16:35

जेहो दिन रुकमिनी जनम तोहार हे / अंगिका लोकगीत

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> रुक्मिणी के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रुक्मिणी के दुलहे के रूप में कृष्ण आये हैं। रुक्मिणी की माँ कहती है- ‘अगर मैं जानती कि कृष्ण जामाता के रूप में आयेंगे, तो पहले से ही दान-दहेज के लिए उपयुक्त सामग्री एकत्र करके रखती।’ इस गीत में विवाह के अवसर पर धोती, अंगूठी, ताँबे के कलश आदि के अतिरिक्त गाय, भैंस आदि मवेशियों को भी दान के रूप में देने की प्रथा का उल्लेख हुआ है।

जेहो दिन रुकमिनी जनम तोहार हे।
आगे, ऐंगना झलकि गेइलो, किरिसन<ref>कृष्ण</ref> जमाय हे॥1॥
जो हमें जानतौं गे माइ, किरिसन होइतो जमाय हे।
आगे, तसर<ref>एक प्रकार का रेशम</ref> के धोतिया, राखतौं बेसाय<ref>खरीदकर</ref> हे।
आगे, सोने के अँगुठिया गे मैयाँ, राखतों गढ़ाय हे॥2॥
जो हमें जानतौं गे मैया, किरिसन होइतो जमाय हे।
कलसी तमडुआ<ref>ताँबे का कलश</ref> गे मैया, राखतौं बेसाय हे।
गैया महेसिया<ref>भैंस</ref> गे मैया, राखतौं बेसाय हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>