भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजा ययाति / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण सिंह चौहान |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चलु राही द्वापर कें हाल सुनी लेहु रामा।
शुरु शुरु ययाति के राज हो सांवलिया॥7॥
बड़ सूर-बीर रामा धरमा निपुणमा हो।
ओन धोन से पूर छिलैय राज हो सांवलिया॥
राजा ययाति के ते वर सुकुमार रामा।
यदु अरु पुरु दुअ लाल हो सांवलिया॥8॥
कोमल, किसोर विदमान मृदुभाषिया हो।
पुरु के दुलार राजा करैय हो सांवलिया॥
सब गुण आगर बनाय पालि-पोसी रामा।
राज सौंपी बन पग धारैया हो सांवलिया॥9॥