भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुराज मांग / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण सिंह चौहान |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीषम, विराट, सरपंच श्री कृष्ण रामा।
बिदुर, द्रुपद आदि पंच हो सांवलिया॥
सब मिली पाण्डव के त्याग तप देखी रामा।
एत दुख जानी के बिचारैय हो सांवलिया॥
चलु कुलवोरना के पास एक बार रामा।
देखियो ते लेबैय किय चाहैय हो सांवलिया॥
पंच सरपंच मिली खूबे समुझावैय रामा।
कुल बोरना त टस सें न मस हो सांवलिया॥
पांच गांव पाण्डव गुजर करे मांगेय रामा।
तनिको न लोभ युधिष्ठिर हो सांवलिया॥