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कुलनास मित्रडाह / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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मान लो कि लोभ के कारण भैया दुरयोधन।
वुधि के खटाई में फूलावे हो सांवलिया॥
जरि को न दुःख बंश नाश होई जैते रामा।
घर घर जुलुम उठतैय हो सांवलिया॥
नेहियो से डाह करि घोर पाप लेतैय रामा।
चारो ओर बैरी मररंतैय हो सांवलिया॥
जानि बुझि भली भांति वंश नाश दोषवा हों
हमरौ त चाही ये हो सोचे हो सांवलिया॥