भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कर्ज़ की सीढ़ियाँ / महेश सन्तोषी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तोषी |अनुवादक= |संग्रह=हि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा, तुम्हारा, किसी का भी नहीं है यह शहर,
ये कर्ज़ में डूबी हुई बस्तियाँ, ये गिरवी रखे हुए घर!
एक कर्ज़ से दूसरे कर्ज़ तक का यह रोज का सफर,
दौड़ती हुई साँसों की प्रतिभूतियाँ,
हर ओर से उठते हाँफते हुए स्वर!

कल इसी तरह हम एक सदी से दूसरी सदी में जाएँगे,
चले जाएँगे,
और क्या हम आने वाली पीढ़ियों के लिए
साँसों को गिरवी रखने की वसीयतें छोड़ जाएँगे?

कर्ज़ की एक नयी सीढ़ी की तरह,
जब एक सीढ़ी ले लेगी
दूसरी पीढ़ी की जगह!