भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समूचे आँगन में / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:51, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
समूचे आँगन में
बड़े चाव से
गुलाब तो लगाये
छलावों
भुलावों
अलगावों में,
बनते रिश्ते भी
बिगड़-से गये
अब तो
पनपते हैं
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
बस
काँटे ही काँटे
मन की बस्तियों में
गहरी झनझनाहट से भरे
चीखते
चिल्लाते
साँय-साँय करते हुए
सन्नाटे...