भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खौफनाक मंज़र / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मायूस इलाक़ों से
उजड़ी हुई बस्तियों से
ढहाये गये मकानों से
बेचैन खंडहरों से
आज भी
झुलसाये गये
मासूमों की
दर्दनाक चीखें गूँजती हैं
जम जाते हैं, पाँव
कँपकँपाती हैं, धड़कने
वह
खौफनाक मंज़र
आँखों से होकर
जब-जब गुज़रता है।