भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन में झमकी केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:28, 3 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।
मेहंदी रचैतै जी,
लगै तै महावर।
सोलहो शृंगार करतै,
हँसतै दिलावर।
सजतै लिलारोॅ में हरी-हरी बिंदिया।
सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।
झूला कदम्बोॅ में
सखी सहेलिया।
साजन झुलैतै जी!
बजतै बसुरिया।
हवा में लहरैतै धानी चुनरिया।
सावन में झमी केॅ बरसोॅ बदरिया।
सजनीं सें मिलै लेॅ अयतै साँवरिया।