भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरा बिना सावन / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 3 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तोरा बिना सावन खूँखार लागै छै।
करेजा में बरछी बौछार लागै छै।
रिमझिम फुहार
गरम पानी जूकाँ।
मूसलधार बरसा
नागिन नानी जकाँ।
रही-रही बिजली टंकार लागै छै।
तोरा बिना सावन खूँखार लागै छै।
करेजा में बरछी बौछार लागै छै।
ठनका जब ठनकै छै
फाटै छै कान।
बादल जब हुमड़ै छै
काँपे छै प्राण।
हवा केॅ झकोरा फुफकार लागै छै।
तोरा बिना सावन खूँखार लागै छै।
करेजा में बरछी बौछार लागै छै।
जब सें बिछुड़ली छौ,
घुरी नैं अयली छौ।
थक्की केॅ बैठलॅ छी।
कहाँ नुकैली छौ?
कजरी, चौपाल सब अंगार लागै छै।
तोरा बिना सावन खूँखार लागै छै।
करेजा में बरछी बौछार लागै छै।