भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरा बिना मोॅन हे! / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 3 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तोरा बिना मोॅन हे! बेचैन लागै छै।
तोरा बिना पहाड़ हे! दिन रैन लागै छै।
पूछै छै फूचो
अयभौ तों कैहिया?
बोलऽ नीं बाबा!
कहाँ दादी मैइया?
सच्चे में सब्जी हे! लोहरैन लागै छै।
तोरा बिना मोॅन हे! बेचैन लागै छै।
तोरा बिना पहाड़ हे! दिन रैन लागै छै।
आँखी में राखी केॅ
सूतै छीहौं रात केॅ।
बड़ा कठिन लागै छै,
कटना बरसात केॅ।
जगला पर व्याकुल हे! दोनों नैन लागै छै।
तोरा बिना मोॅन हे! बेचैन लागै छै।
तोरा बिना पहाड़ हे! दिन रैन लागै छै।
सब कुछ में चेहरा,
तोरे देखाबै छै।
डेग-डेग काम बहुत,
तनियों नैं भाबै छै।
कानों करेजा में तीर हे! बादल केॅ बैन लागै छै।
तोरा बिना मोॅन हे! बेचैन लागै छै।
तोरा बिना पहाड़ हे! दिन रैन लागै छै।