भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही तुम / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इसी दिन
इसी नदी के किनारे
तुम बोलते रहे
मैं ताकती रही तुम्हारे
अधर
उमड़ती रही नदी
मेरे भीतर
आज वही
नदी का किनारा है
वही तुम
पर
मेरे भीतर की नदी क्यों
नहीं उमड़ती?