भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छाट देलो अब छाति पीटो / जीत नराइन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 24 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीत नराइन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSurina...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छाट देलो अब छाति पीटो
कि चारों ओर बसल भारतिलोग

जबरजस्त संस्किरती भारत के
जब पेट ना भरल पाइल ते बिरथा है
तोर घमंड, इ अपना सरम के बदला है

ए भारति भाई, का हम तोर भाई है
काहें ना तु हमसे बराबर बतिया है
बड़ा भाई के हम गोड़ ना धरिला
और कैसन भाई, अब माई तो दुइ, तीन है।