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नेहरू के प्रति / लाखन सिंह भदौरिया

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हंस के शावक ही करते, जब क्षीर से नीर को बाहर हैं।
अश्व के वंशज ही जग में, द्रुतगामी सदैव से जाहर हैं।
‘लाखन’ केहरि के सुत ही कहलाते धरा पर नाहर हैं।
तो कौन अचम्भा हुआ जग में, यदि मोती के लाल जवाहर हैं।