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जो मरण को जन्म समझे / बलबीर सिंह 'रंग'

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जो मरण को जन्म समझे,
मैं उसे जीवन कहूँगा।

वह नहीं बन्धन कि जो अज्ञानता में बाँध ले मन,
और फिर सहसा कभी जो टूट सकता हो अकारण।
मुक्ति छू पाये न जिसको,
मैं उसे बन्धन कहूँगा।

वह नहीं नूतन कि जो प्राचीनता की जड़ हिला दे,
भूत के इतिहास का आभास भी मन से मिटा दे।
जो पुरातन को नया कर दे,
मैं उसे नूतन कहूँगा।

वह नहीं पूजन कि जो देवत्व में दासत्व भर दे,
सृष्टि के अवतंस मानव की प्रगति को मन्द कर दे।
भक्त को भगवान कर दे,
मैं उसे पूजन कहूँगा।