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रोते-रोते रात सुला दी / बलबीर सिंह 'रंग'
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रोते-रोते रात सुला दी,
भोर जगाया गाते-गाते।
यह कैसी गलती कर डाली,
किसने मेरी नींद चुरा ली।
पंख थके मन के पंछी के,
स्वप्न-संदेसे लाते-लाते।
रोते-रोते रात सुला दी,
भोर जगाया गाते-गाते।
दुनिया की दूरी से बढ़ कर
अपनी मजबूरी से लड़ कर।
सब कुछ खोकर हानि उठा ली,
लाभ लुटाया पाते पाते।?
रोते-रोते रात सुला दी,
भोर जगाया गाते-गाते।
मुझको भी सपने आये थे,
उनमें कुछ अपने आये थे।
आते-आते आग लगा दी,
नीर बहाया जाते-जाते।
रोते-रोते रात सुला दी,
भोर जगाया गाते-गाते।