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यह मेरी गुमनाम ज़िन्दगी / बलबीर सिंह 'रंग'

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यह मेरी गुमनाम ज़िन्दगी,
बिना बात बदनाम ज़िन्दगी।

सुबह ज़िन्दगी, शाम ज़िन्दगी,
गोया आठों याम ज़िन्दगी।

इंसानियत, इबादत, उल्फ़त,
इन का सदर मुक़ाम ज़िन्दगी।

कभी किसी के काम न आयी,
कितनी नमकहराम ज़िन्दगी।

‘रंग’ जिसे कहती है दुनिया,
सचमुच उसका नाम ज़िन्दगी।