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छंद 52 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
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दोहा
(सरस्वती अनुग्रह-वर्णन)
चिंता और उछाह मैं, पर्यौ जानि द्विज-दीन।
बिधिहि तुरत भजि भारती, मात अनुग्रह कीन॥
भावार्थ: किंतु चिंता और उत्साह में (जिसको कि आगे कह आए हैं) मुझको पड़ा देख भगवती शारदा, ब्रह्माजी का शीघ्र संग त्यागकर मुझ आधीन के निकट अत्यंत अनुग्रह से प्राप्त हुईं।