भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक भटकी सदा सा रहता हूं / ध्रुव गुप्त

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 2 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव गुप्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक भटकी सदा सा रहता हूं
आजकल बेपता सा रहता हूं

घर मेरे दिल में भी रहा न कभी
घर में मैं भी ज़रा सा रहता हूं

चांद से रोज़ आंख लड़ती है
मैं भी छत पे पड़ा सा रहता हूं

मुझसे पूछो तो मुद्दआ क्या है
मैं जो ख़ुद से खफ़ा सा रहता हूं

तुम गुज़रते नहीं इधर से कभी
रहगुज़र में पड़ा सा रहता हूं

मेरी तलाश कर सको तो करो
इन दिनों मैं हवा सा रहता हूं